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रायपुरिया@राजेश राठौड़
आदिवासी परंपरा में बड़ी मन्नत का विशेष महत्व होता है, जो न केवल आध्यात्मिक विश्वास से जुड़ी होती है बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध परंपरा को दर्शाती है। परिवार में आर्थिक संकट के समय घर के मुखिया ने अपने कुल देवता से बड़ी मन्नत मांगी, जो पूर्ण होने पर एक भव्य आयोजन किया गया।
इस आयोजन में क्षेत्र के लगभग 30 ढोल-थाली वादकों को आमंत्रित किया गया। रात भर ढोल, मांदल और थाली की आवाज़ से वातावरण गूंजता रहा। कुल देवता की विशेष पूजा अर्चना और भजन-कीर्तन के साथ महिलाएं भी पारंपरिक गीत गाकर नृत्य में शामिल हुईं। कुल देवता को घास की बनी कुटिया में विराजमान किया गया, जहां पूरा आयोजन सम्पन्न हुआ।
विकास डामोर ने जानकारी दी कि मन्नत का यह आयोजन पूरी रात चलता है और सुबह होते ही सभी ढोल वाले अपने-अपने घरों की ओर लौट जाते हैं। आयोजन की एक खास बात यह भी है कि आमंत्रित ढोल वादकों में से यदि कोई बिना सूचना के आयोजन में शामिल नहीं होता, तो उसके घर रखा ढोल अपने आप बजने लगता है — इसे एक अलौकिक संकेत माना जाता है और ऐसे में ढोल वाले को किसी भी परिस्थिति में मन्नत में शामिल होना पड़ता है।