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रायपुरिया@राजेश राठौड़
अगर मन में श्रद्धा और भक्ति हो तो कोई भी मन्नत खाली नहीं जाती। इसी आस्था का उदाहरण पेश किया थान्दला तहसील के गांव चेनपुरा निवासी मन्नत धारी मानसिंग मचार ने। भगौरिया हाट पहुंचे मानसिंग ने बताया कि उनके भाई की पत्नी लंबे समय से गंभीर रूप से बीमार थी। पहले स्थानीय अस्पतालों में इलाज करवाया, लेकिन कोई खास सुधार नहीं हुआ। इसके बाद अहमदाबाद के एक अस्पताल में भी भर्ती कराया, लेकिन डॉक्टरों ने बताया कि महिला का लीवर खराब हो चुका है और कोई विशेष उपचार संभव नहीं है।
इसी बीच, परिवार के कुछ सदस्यों और रिश्तेदारों ने सलाह दी कि वे ‘गल बाबजी’ की मन्नत लें। इस विश्वास के साथ कि ईश्वर कृपा करेंगे, मानसिंग ने तत्काल स्नान कर मन्नत ली और गल बाबजी की प्रतिज्ञा कर ली कि यदि उनकी भाभी स्वस्थ हो जाती हैं तो वे गल घूमेंगे।
मन्नत लेने के कुछ समय बाद ही उनकी भाभी की सेहत में सुधार होने लगा और तीन-चार महीने के भीतर वह पूरी तरह स्वस्थ हो गईं। अब, अपनी मन्नत पूरी करने के लिए मानसिंग गल में घूम रहे हैं।
गल बाबजी की कठिन साधना
गल बाबजी की यह मन्नत काफी कठिन होती है। होली पर्व के पूर्व शुरू होने वाले भगौरिया हाट बाजारों में शामिल होना पड़ता है। मन्नत धारी व्यक्ति के शरीर पर हल्दी लगी होती है, आँखों में काजल, लाल वस्त्र धारण किए, सिर पर लाल पगड़ी और हाथों में श्रीफल व कांच कंगा होता है। सबसे कठिन बात यह होती है कि पूरे समय नंगे पैर रहना पड़ता है। सात दिनों तक घर के भीतर प्रवेश नहीं कर सकते और सिर्फ एक समय भोजन, वह भी सूर्यास्त के बाद, ग्रहण किया जाता है। इस दौरान एक अन्य व्यक्ति मन्नत धारी के साथ रहता है, जो उसके लिए भोजन की व्यवस्था करता है।
भगौरिया हाट के प्रत्येक स्थल की परिक्रमा करने के बाद होली दहन के दूसरे दिन आयोजित होने वाले ‘गल मेले’ में मन्नत उतारी जाती है। इस कठिन साधना के बावजूद मानसिंग जैसे श्रद्धालु पूरी निष्ठा के साथ इस परंपरा का निर्वहन करते हैं।
यह उदाहरण इस बात को प्रमाणित करता है कि आस्था और श्रद्धा की शक्ति किसी भी असंभव को संभव बना सकती है। भगौरिया हाट में इस प्रकार की आस्थाओं की झलक देखने को मिलती है, जो जनजातीय समाज की गहरी धार्मिक भावनाओं को दर्शाती है।