धर्म में अरुचि, प्रमाद और एकाग्रता का अभाव — साध्वी ओमनिधि म.सा. ने बताए धर्म प्रवृत्ति के तीन मुख्य बाधक तत्व…!

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झाबुआ@हरीश यादव
ऋषभदेव बावन जिनालय, झाबुआ। धर्म की सही साधना के लिए मन की एकाग्रता, श्रद्धा और अप्रमत्तता आवश्यक हैं। इसी संदेश के साथ साध्वी श्री ओमनिधि म.सा. ने सोमवार को स्थानीय ऋषभदेव बावन जिनालय उपाश्रय में प्रवचन देते हुए धर्म मार्ग में आने वाले मानसिक अवरोधों पर प्रकाश डाला।
साध्वी जी ने फरमाया कि धर्म प्रवृत्ति के तीन मुख्य बाधक तत्व होते हैं—खेद दोष (अरुचि), उद्वेग दोष (प्रमाद) और क्षेप दोष (एकाग्रता का अभाव)।
उन्होंने समझाया कि खेद दोष व्यक्ति को धर्म में अरुचि पैदा करता है, उद्वेग दोष आलस्य और प्रमाद लाता है, जबकि क्षेप दोष के कारण व्यक्ति धर्म क्रिया में मन को केंद्रित नहीं कर पाता।
साध्वी जी ने कहा कि “परमात्मा की पूजा उत्तम द्रव्य से करने से भावों की विशुद्धि होती है, लेकिन उस पूजन में यदि मन एकाग्र न हो, तो उसका पूर्ण फल नहीं मिलता।” उन्होंने यह भी बताया कि “धर्म क्रिया के समय मन-वचन-काया से पूर्ण रूप से जुड़ना आवश्यक है। तभी जीव मोक्ष की दिशा में अग्रसर हो सकता है।”
इस प्रवचनमाला में सोधर्म बृहद तपागच्छाधिपति आचार्य भगवंत श्रीमद विजय जयानंद सूरीश्वरजी म.सा. एवं आचार्य भगवंत श्रीमद विजय दिव्यानंद सूरीश्वरजी म.सा. की आज्ञानुवर्तिनी साध्वी तीर्थनिधि म.सा. आदि ठाणा 3 विराजमान हैं। प्रवचन प्रतिदिन प्रातः 9:30 बजे से आयोजित हो रहे हैं।
प्रवचन के दौरान बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकाओं की उपस्थिति रही। प्रमुख रूप से धर्मचंद मेहता, रमेश छाजेड़, उल्लास जैन, अंतिम जैन, इंद्रमल संघवी, संजय मेहता, राजेश मेहता, प्रतीक मुथा, रिंकू रनवाल, अनिल रूनवाल, सौरभ जैन सहित अनेक श्रद्धालु लाभान्वित हुए।