
#Jhabuahulchul
पेटलावद@जितेंद्र बैरागी
सरकारी तंत्र की लापरवाही का जीता-जागता उदाहरण पेटलावद तहसील में सामने आया है। यहां जन्म प्रमाण पत्र के लिए दिए गए आवेदन को बार-बार रिजेक्ट कर गरीब आदिवासी को 5 माह से भटकाया जा रहा है। वजह क्या है? वजह इतनी छोटी है कि सुनकर किसी को भी गुस्सा आ जाए – जांच करता की अपनी लिखाई की गलती।
बामनिया के समीप ग्राम पंचायत मुल्थानिया निवासी रामचंद्र राणा ने अपने दो बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र के लिए पेटलावद तेहसिल के जन्म प्रमाण पत्र बनाने वाले कार्यालय में विधिवत आवेदन किया। पर हर बार नाम भिन्न-भिन्न बताकर आवेदन निरस्त कर दिया गया। असलियत में, गलती आवेदक की नहीं बल्कि जांच करता की थी। नाम रामचंद्र में चंद्र की मात्रा हर बार गलत लिखी गई, और इसी आधार पर आवेदन खारिज कर दिया गया।

सवाल यह है ,,
क्या जांच करता की जल्दबाजी से हुई एक मात्रा की गलती, किसी गरीब आदिवासी को 5 महीने तक तहसील के चक्कर कटवाएगी?
क्या इसी तरह 900 रुपए खर्च करवाना ही सिस्टम की जिम्मेदारी है?
रामचंद्र राणा बताते हैं कि जब उन्होंने बार-बार कारण पूछा तो अधिकारी ने ठंडे लहजे में कह दिया – इसमें लिखा है, देख लो मुझे नहीं पता। बाद में जब एक शिक्षित व्यक्ति से उन्होंने दस्तावेज़ दिखवाए तो असली गलती उजागर हुई, जांच करता की लिखाई। और जब रामचंद्र ने यह बात आधार कार्ड और बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र में एक जैसा नाम है। अधिकारी को फोन पर बताई तो जवाब मिला ठीक है, फिर से आवेदन भर दो,इस बार सही लिख दूंगा।





