
12 सितंबर अब सिर्फ तारीख नहीं है..?…यह पेटलावद के लिए वो ज़ख्म है जो वक्त बीतने के बावजूद आज भी हरा है।
क्षेत्र की विधायिका और प्रदेश की मंत्री,,मुख्यमंत्री के साथ मिलकर इन जख्मों पर करेंगी गंभीर विचार…!
#Jhabuahulchul
विशेष रिपोर्ट@आयुष पाटीदार /जितेंद्र बैरागी ✍🏻
12 सितंबर 2015…मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के पेटलावद गांव की वो सुबह जिसने 10 साल पहले पूरे कस्बे की रफ्तार हमेशा के लिए बदल दी। आम दिनों की तरह बाजार सज रहा था, बच्चे स्कूल जाने की तैयारी कर रहे थे, लोग दुकान-दफ्तर के काम में लग रहे थे। लेकिन अचानक हुए भीषण धमाके ने सब कुछ तहस-नहस कर दिया।
एक पल में जिंदगी हंसी-खुशी से मातम में बदल गई। धमाके से आसपास की इमारतें मलबे में तब्दील हो गईं, दुकानों की छतें उड़ गईं और सड़कें खून से लाल हो गईं। चीखें इतनी भयानक थीं कि सुनकर ही दिल कांप जाए। हर तरफ अफरा-तफरी मच गई, लोग भागते हुए अपने अपनों को ढूंढ रहे थे। कई परिवारों के चिराग हमेशा के लिए बुझ गए।
हादसे की गूंज कई किलोमीटर दूर तक सुनाई दी। स्थानीय लोगों ने जब तक संभलकर मदद शुरू की, तब तक मौत ने अपना खेल दिखा दिया था। पुलिस और प्रशासन मौके पर पहुंचे, लेकिन तब तक पेटलावद का दिल खून से भीग चुका था।
इस हादसे में दर्जनों निर्दोष लोगों की जान गई और सैकड़ों घायल हो गए। जो बच गए, उनकी आंखों में वो मंजर आज भी ताजा है। कोई मां आज भी बेटे को याद कर रोती है, तो कोई बच्चा अपने पिता की तस्वीर देखकर सवाल करता है—“पापा क्यों चले गए…?”
सरकार ने जांच बैठाई, मुआवजा घोषित किया और कई वादे किए। लेकिन सवाल अब भी वहीं खड़ा है—क्या सिर्फ पैसे से किसी परिवार का टूट चुका सहारा लौटाया जा सकता है…? क्या अपनों की मौत का दर्द कभी भुलाया जा सकता है…?
पीड़ित परिवार आज भी यही कहते हैं अगर विस्फोटक जैसी खतरनाक सामग्री को खुलेआम जमा करने की लापरवाही नहीं होती, तो ये त्रासदी कभी नहीं होती। सिस्टम की चूक ने निर्दोषों की जान ली और कस्बे की खुशियां छीन लीं।
बरसी के मौके पर जब लोग अपने प्रियजनों को याद करते हैं, तो उनकी आंखों में आंसू और दिल में सवाल ही सवाल होते हैं। पेटलावद हादसा सिर्फ एक विस्फोट नहीं था, बल्कि एक ऐसी त्रासदी है जिसने इंसानियत को झकझोर दिया।
झाबुआ हलचल टीम की ओर से भावपूर्ण श्रद्धांजलि हम सभी मृतात्माओं को सहृदय पुण्य स्मरण के साथ विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।




