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रायपुरिया@राजेश राठौड़
ग्रामीण अंचल में आज भी पुरानी परंपराओं को संजोकर रखा जा रहा है। बसंत पंचमी के अवसर पर गांव में वर्षों पुरानी एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है, जिसमें आम के पेड़ पर लगे मोर (नए पत्ते, फूल और कली) दिखाने की प्रथा है। इसे अत्यंत शुभ माना जाता है, और मान्यता है कि ऐसा करने से मां सरस्वती एवं मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है। विशेष रूप से व्यापारी अपने गल्लों में आम के मोर रखवाते हैं ताकि उनके व्यवसाय में वृद्धि हो और सुख-समृद्धि बनी रहे।
गांव के बारोट परिवार इस परंपरा को पीढ़ियों से निभा रहा है। बसंत पंचमी की सुबह वे पहले गांव के सभी मंदिरों में जाकर भगवान को मोर अर्पण करते हैं, फिर पूरे गांव में जाकर प्रत्येक घर में आम के मोर दिखाते हैं। इस बदले में लोग उन्हें दक्षिणा देते हैं, जिसे आशीर्वाद के रूप में ग्रहण किया जाता है।
रामकन्या बाई बारोट, जो इस परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं, कहती हैं, “हमारे बुजुर्ग इस परंपरा को निभाते आ रहे थे। अब वे इस दुनिया में नहीं रहे, इसलिए हमने इस परंपरा का बीड़ा उठाया है। यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि हमारे पूर्वजों की सीख है, जिसे हम अगली पीढ़ी तक पहुंचाना चाहते हैं।”
ग्रामीणों के अनुसार, बसंत ऋतु का आगमन शुभ कार्यों की शुरुआत का संकेत देता है। आम के पेड़ पर मोर देखना विशेष रूप से मंगलकारी माना जाता है, क्योंकि यह प्राकृतिक परिवर्तन और नवचेतना का प्रतीक होता है। इस दिन के बाद से विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण जैसे मांगलिक कार्यों की शुरुआत भी हो जाती है।
पुरानी परंपराओं को जीवित रखने के इस प्रयास से ग्रामीण समाज में आपसी प्रेम और संस्कृति की झलक मिलती है, जो आधुनिकता के दौर में भी अपनी पहचान बनाए हुए है।