खवासा कन्या हाईस्कूल में अतिथि शिक्षक घोटाला – प्राचार्य की भूमिका संदिग्ध,,,एबीवीपी ने उठाए सवाल..!

#Jhabuahulchul
झाबुआ डेस्क। खवासा स्थित कन्या हाईस्कूल एक बार फिर विवादों में घिरता नजर आ रहा है, इस बार मामला एक अतिथि शिक्षक की नियुक्ति और उपस्थिति को लेकर सामने आया है, जो एक साथ तीन अलग-अलग स्थानों पर सेवाएं दे रहा है – सरकारी स्कूल, अस्पताल और एक निजी स्कूल। हैरानी की बात यह है कि इन तीनों स्थानों पर उक्त शिक्षक की उपस्थिति दर्ज की जाती है और उसे नियमित वेतन भी मिल रहा है।
एबीवीपी के छात्रों ने इस पूरे प्रकरण की जानकारी सूचना के अधिकार (RTI) के माध्यम से हासिल की है, जिसमें यह खुलासा हुआ कि संबंधित अतिथि शिक्षक कन्या हाईस्कूल में कार्यरत रहते हुए अन्य दो संस्थानों से भी वेतन ले रहे हैं। छात्र संगठन ने आरोप लगाया है कि यह सब कुछ स्कूल प्राचार्य की सीधी निगरानी और मिलीभगत से हो रहा है।
प्राचार्य की भूमिका सवालों के घेरे में…
छात्रों का कहना है कि जब तक प्राचार्य की सहमति न हो, तब तक किसी शिक्षक की तीन जगह उपस्थिति और वेतन संभव नहीं है। इससे पहले भी स्कूल प्राचार्य की लापरवाही के कारण दर्जनों छात्राओं को गलत परिणाम के कारण अनुतीर्ण कर दिया गया था, जिसकी शिकायतें उच्च शिक्षा विभाग तक पहुंच चुकी थीं।
शिक्षकों में भी असंतोष….
स्कूल के एक पूर्व शिक्षक मोहनलाल वर्मा, जो लंबे समय से विद्यालय में सेवाएं दे रहे थे, उन्होंने भी प्राचार्य के व्यवहार और प्रताड़ना से तंग आकर समय से पूर्व स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) ले ली। वर्मा ने अपने त्यागपत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया कि प्राचार्य के दबावपूर्ण रवैये के कारण वे मानसिक तनाव में थे और उन्हें स्वेच्छा से नौकरी छोड़नी पड़ी।
छात्र संगठन की मांग….
एबीवीपी ने जिला शिक्षा अधिकारी से मांग की है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराई जाए और दोषी पाए जाने पर संबंधित अतिथि शिक्षक और प्राचार्य दोनों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। साथ ही, स्कूल में पारदर्शिता लाने के लिए नियमित निरीक्षण और ऑडिट की भी मांग की गई है।
चौंकाने वाली बात यह है कि इतने गंभीर मामले के बावजूद स्थानीय जनप्रतिनिधियों और शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की चुप्पी भी कई सवाल खड़े कर रही है। क्या इस घोटाले में बड़े स्तर पर संरक्षण प्राप्त है…?
खवासा कन्या हाईस्कूल में चल रही अनियमितताओं और प्रशासनिक लापरवाहियों ने शिक्षा की गुणवत्ता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यदि शीघ्र सख्त कदम नहीं उठाए गए, तो यह स्थिति अन्य सरकारी स्कूलों के लिए भी एक गलत उदाहरण बन सकती है।