मेघनगर

मेघनगर की विवादित सर्वे नंबर 557 की भूमि निजी या शासकीय..?..नगर परिषद (पूर्व की पंचायत) ने 2015 में बताया था फर्जी रजिस्ट्री…!

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मेघनगर@मुकेश सोलंकी 

मेघनगर में स्थित में नगर के मुख्य मार्ग पर सर्वे नंबर 557 की करोड़ों की जमीन का अजीब विवाद है। अजीब इसलिए की कुछ वर्षों पूर्व उक्त भूमि पर नगर के एक व्यक्ति द्वारा माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए निर्माण कार्य प्रारंभ किया गया था किंतु रिकॉर्ड में उक्तभूमि मध्य प्रदेश शासन की होकर शासकीय भूमि के रूप में दर्ज होने से नगर के पत्रकारों द्वारा मामले को प्रशासन के संज्ञान में लाया गया था। पत्रकारों एवं जागरूक नगरवासियों के लगातार विरोध के चलते पूर्व में पदस्थ तहसीलदार द्वारा 2015 में शासकीय भूमि का हवाला देते हुए निर्माणाधीन भवन को ध्वस्त कर दिया गया था। उसके बाद में 2019 में आए दो तहसीलदार राजेश सौरते एवं हर्षल बहरानी द्वारा उक्त सर्वे की भूमि के निजी नामांतरण की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी किंतु इससे पूर्व की नामांतरण की कार्रवाई पूर्ण होती इन तहसीलदारों का ट्रांसफर हो गया । आश्चर्य तो तब हुआ जब उक्त दोनों तहसीलदारों के ट्रांसफर के बाद में पदस्थ हुए नवीन तहसीलदार कटारा ने इसी भूमि को शासकीय भूमि का हवाला देते हुए नामांतरण आदेश का पालन करने में अक्षमता जाहिर कर दी। इसके बाद में संबंधित व्यक्ति ने न्यायालय की शरण ली क्योंकि न्यायालय में दो पक्षों को सुनने के बाद में माननीय न्यायाधीश द्वारा फैसला सुनाया जाता है किंतु आश्चर्य की बात यह थी कि यहां पर शासन-प्रशासन का पक्ष रखने हेतु अधिकारी न्यायालय में प्रस्तुत ही नहीं हुए और इसी के चलते न्यायालय द्वारा एक पक्षीय फैसला सुनाते हुए संबंधित व्यक्ति को सर्वे नंबर 557 की भूमि में प्लॉट दिए जाने हेतु प्रशासन को आदेशित कर दिया गया था लेकिन माननीय कोर्ट द्वारा इस आदेश में चतुर्सीमा का कोई उल्लेख नहीं किया गया है। यहां तक की प्रशासन पर कंटेंम्ट आफ कोर्ट लग चुका है। अब दिलचस्प प्रश्न यह है कि यदि भूमि निजी है तो पूर्व के तहसीलदार द्वारा किस आधार पर निर्माणाधीन भवन को ध्वस्त किया गया और यदि भूमि शासकीय है तो किस आधार पर बाद में आए तहसीलदारों द्वारा निजी नामांतरण कर दिया गया।

प्रश्न तो यह भी उठता है कि आखिर क्यों शासकीय भूमि को बचाने हेतु प्रशासन द्वारा न्यायालय में अपना पक्ष नहीं रखा गया…? अब देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि विभाग द्वारा उक्त भूमि को निजी हाथों में सौंप दिया जाएगा या पुनः न्यायालय में जाकर अपना पक्ष रखा जाएगा। यदि निजी हाथों में सौंप दिया जाता है तो इसी नेचर की और भी जमीन है जिन पर निजी भूमि होने का दावा ठोका गया है यदि ऐसा हुआ तो इस जमीन के नजदीक बना शासकीय पटवारी भवन भी निजी हाथों में चला जाएगा। कहीं ऐसा ना हो जाए की शासन द्वारा बनाए गए पटवारी भवन का किराया चुकाने हेतु पटवारीयों को ही नोटिस थमा दिया जाए। अब यह तो भविष्य ही बताएगा कि जिले की लोकप्रिय कलेक्टर इस चुनौती को किस प्रकार से हैंडल करती है.?

सर्वे नंबर 557 की भूमि एवं तोड़ा गया निर्माण कार्य

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