
#Jhabuahulchul
बामनिया@जितेंद्र बैरागी✍🏻
ग्राम पंचायत रामपुरिया के पटेल फलियां में वर्ष 2008-09 में निर्मित आंगनवाड़ी केंद्र की स्थिति महिला एवं बाल विकास विभाग के कुपोषण मुक्त भारत के बड़े-बड़े दावों की पोल खोल रही है। चार महीने पहले शासन के आदेश पर इस आंगनवाड़ी भवन को ग्राम पंचायत ने जेसीबी लगाकर ध्वस्त कर दिया। इसके बाद न तो नया भवन बनाया गया और न ही आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की गतिविधियों का कोई अता-पता है। यह स्पष्ट नहीं है कि आंगनवाड़ी अब कहां और कैसे संचालित हो रही है।स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज, 15 मई 2025 को दलिया की कट्टियां, जो बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए पोषाहार के तौर पर वितरित की जानी थीं, दिलीप मेडा के घर के सामने सड़क पर ही फेंक दीया गया। राशन लाने वाला वाहन चालक कट्टियों को सड़क पर छोड़कर चला गया। बारिश के कारण ये कट्टियां पूरी तरह भीग गईं और खराब हो गईं। यह घटना न केवल विभागीय लापरवाही को उजागर करती है, बल्कि गरीब बच्चों और महिलाओं के लिए चलाई जा रही योजनाओं के प्रति उदासीनता को भी दर्शाती है।
आंगनवाड़ी भवन का विध्वंस: शासन का आदेश या लापरवाही..?
पटेल फलियां में 2008-09 में निर्मित आंगनवाड़ी भवन को चार महीने पहले ग्राम पंचायत ने शासन के आदेश का हवाला देकर जेसीबी से ढहा दिया। ग्रामीणों के अनुसार, भवन को तोड़ने से पहले न तो कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई और न ही आंगनवाड़ी को कहीं और स्थानांतरित करने की कोई जानकारी दी गई। भवन के ध्वस्त होने के बाद आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की अनुपस्थिति ने बच्चों और गर्भवती महिलाओं को मिलने वाली सेवाओं पर पूरी तरह से रोक लगा दी है।ग्रामीणों का कहना है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता का कोई निश्चित ठिकाना नहीं है और वह कभी-कभार ही गांव में नजर आती है। ऐसे में बच्चों को पोषाहार, स्वास्थ्य जांच टीकाकरण और प्री-स्कूल शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाएं पूरी तरह ठप हैं।
राशन वितरण में लापरवाही: सड़क पर फेंका गया दलिया…
15 मई 2025 को हुई घटना ने विभागीय लापरवाही की हदें पार कर दीं। आंगनवाड़ी केंद्र के लिए लाया गया दलिया का राशन, जो बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए कुपोषण से लड़ने का एकमात्र साधन है, दिलीप मेडा के घर के सामने सड़क पर फेंक दिया गया। बारिश के कारण कट्टियां भीग गईं और राशन बर्बाद हो गया। ग्रामीणों ने बताया कि वाहन चालक ने राशन उतारने के बाद किसी को सूचित नहीं किया और न ही आंगनवाड़ी कार्यकर्ता मौके पर मौजूद थी।इस घटना ने ग्रामीणों में आक्रोश पैदा कर दिया है।
एक ग्रामीण, रामसिंह ने कहा, “शासन कहता है कि बच्चे कुपोषण मुक्त होंगे, लेकिन यहां राशन सड़क पर फेंका जा रहा है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ता का कोई पता नहीं, भवन तोड़ दिया गया।
यह कैसा कुपोषण मुक्त अभियान है…?
महिला एवं बाल विकास विभाग के दावों पर सवाल महिला एवं बाल विकास विभाग मध्य प्रदेश में कुपोषण को खत्म करने के लिए कई योजनाएं चला रहा है, जिनमें लाड़ली लक्ष्मी योजना, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, और पोषण ट्रैकर ऐप के जरिए कुपोषित बच्चों की निगरानी शामिल है। लेकिन रामपुरिया जैसे गांवों की स्थिति इन दावों की हकीकत बयान करती है। विभाग के अनुसार, आंगनवाड़ी केंद्रों पर 6 माह से 6 वर्ष तक के बच्चों, गर्भवती और धात्री माताओं को मुफ्त पोषाहार, टीकाकरण, स्वास्थ्य जांच और प्री-स्कूल शिक्षा दी जाती है। लेकिन पटेल फलियां में न तो भवन है, न कार्यकर्ता की मौजूदगी, और न ही राशन वितरण की कोई व्यवस्था।
ग्रामीणों की मांग:जांच और कार्रवाई…
ग्रामीणों ने मांग की है कि इस मामले की उच्च स्तरीय जांच हो और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की जाए। ग्रामीणों का कहना है कि अगर शासन ने भवन तोड़ने का आदेश दिया था, तो वैकल्पिक व्यवस्था क्यों नहीं की गई? आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की अनुपस्थिति और राशन की बर्बादी के लिए जिम्मेदार लोगों को दंडित क्यों नहीं किया जा रहा?विभाग की चुप्पी, शासन की जवाब देही इस मामले में स्थानीय महिला एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। यह स्पष्ट नहीं है कि भवन को तोड़ने का आदेश किस स्तर पर दिया गया और इसके पीछे का कारण क्या था। साथ ही, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की अनुपस्थिति और राशन वितरण में लापरवाही पर विभाग की चुप्पी कई सवाल खड़े करती है।निष्कर्ष: कुपोषण मुक्त भारत का सपना अधूरा पटेल फलियां की यह घटना सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि उन तमाम ग्रामीण क्षेत्रों की हकीकत है, जहां शासन की योजनाएं कागजों तक सीमित रह जाती हैं। जब आंगनवाड़ी भवन ध्वस्त हो रहे हैं, कार्यकर्ता गायब हैं, और राशन सड़क पर फेंका जा रहा है, तब कुपोषण मुक्त भारत का सपना कैसे पूरा होगा?शासन और प्रशासन को चाहिए कि इस मामले की तत्काल जांच करे, आंगनवाड़ी केंद्र को पुनर्जनन दे, और गरीब बच्चों व महिलाओं के लिए चलाई जा रही योजनाओं को धरातल पर उतारे। अन्यथा, कुपोषण मुक्त भारत का नारा सिर्फ खोखला दावा बनकर रह जाएगा।