
#Jhabuahulchul
सारंगी@संजय उपाध्याय
बरवेट नगर के पुण्य धरा पर स्थित प्राचीन शंकर मंदिर प्रांगण में आयोजित तीन दिवसीय नानी बाई रो मायरो का समापन रविवार को हुआ। कथा में पंडित मुरारी ने कहा कि हमें भी लोभ, लालच व मोह का त्याग कर भगवान के प्रति समर्पण भाव से भक्ति करनी चाहिए। तभी प्रभु का मिलन संभव है।
कथा वाचक पंडित अनिरुद्ध मुरारी ने कहा कि यह कथा सेवा, सहयोग और समर्पण की सीख देती है। कथा में सहयोग की भावना होनी चाहिए । क्योंकि सनातन धर्म को जीवित रखना है तो हमें एकजुटता मिलाकर ऐसे धार्मिक अनुष्ठानों करना जरूरी है। नरसी मेहता में भगवान के प्रति सहयोग व समर्पण की भावना थी। जिस दिन हमारे बीच में सहयोग की भावना आ जाएगी। उस दिन हम भी राधे रानी सरकार को प्राप्त कर लेंगे। उन्होंने नरसी मेहता व श्रीकृष्ण के बीच हुए रोचक संवाद को प्रस्तुत किया। कथा में कथा वाचक ने कहा कि घर में कितनी भी बहुएं हों, कोई अपने पीहर से कितना भी लाए, मगर ससुराल के लोगों को कभी भी धन के लिए किसी को प्रताडि़त नहीं करना चाहिए। क्योकि हर किसी की आर्थिक स्थिति एक सी नहीं होती है। जीवन के अंत समय को इंसान को हमेशा याद रखना चाहिए। क्योंकि लकड़ी के लिए नया पेड़ लगाना पड़ेगा। सब कुछ पहले से ही तय होता है।
-विशेष अतिथयो का मंच पर हुआ सम्मान:-
मायरा कथा का समापन दिवस पर विशेष अतिथियों में पेटलावद नगर पंचायत के पार्षद संजय चाणोदिया, पार्षद अनुपम भंडारी, पार्षद मुकेश परमार, कांग्रेस नेता विपुल लोढ़ा, रविराज गुर्जर संजय लोढ़ा, संजय उपाध्याय, रविन्द्र अग्रवाल, रमेश सोलंकी करडावद आदि का कथा व्यास ने अंगवस्त्र ओढ़ाकर सम्मान किया। इसके बाद अतिथियों व्यासपीठ पर विराजित पंडित मुरारी का सम्मान कर सिद्ध पीठ खोरिया हनुमान की स्मृति चिन्ह तस्वीर भेंट की।
-56 करोड़ का मायरा भरा।:-
बरवेट में चल रही तीन दिवसीय नानी बाई रो मायरो में रविवार को 56 करोड़ का मायरा भरा गया। कथा वाचक अनिरुद्ध मुरारी ने कहा कि नानी बाई के ससुराल पक्ष ने सवा 25 मन सुपारी, सवा 25 मन रौली, 80 हजार सोने की मोहरे, 1 करोड़ रुपए रोकड़ व 2 सोने की ईंट मायरा पत्रिका में मांगी थीं। इस पर भी नरसी व्यथित नहीं हुए, क्योंकि उन्हें अपने ठाकुर पर पूरा विश्वास था। मायरा देने के लिए साथ चलने के लिए नरसी ने अपने भाइयों व नगरवासियों को आग्रह किया लेकिन उनकी दशा देखकर कोई उनके साथ नहीं लगा केवल उनकी भजन मंडली के 16 सूरदास ही बैलगाड़ी में बैठकर मायरा भरने गए। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्त की गाड़ी पार करने के लिए कारीगर बनकर गाड़ी सुधारने के लिए आए और भक्त की गाड़ी को उन्होंने स्वयं ही संभाल लिया। जब भक्त की बैलगाड़ी भगवान के हाथ में आ जाती है तो उस भक्त का कल्याण तय है। उन्होंने नरसी की चिंता दूर करते हुए 56 करोड़ का भात भरा जो कि नानी बाई के ससुराल पक्ष से आई मायरा पत्रिका से 4 गुणा बड़ा था। भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त नरसी मेहता ने जब अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया तब उन्हें भगवान का साक्षात्कार हुआ। मायरा भरने वालों में समाजसेवी अशोक भटेवरा, रतनलाल पाटीदार, अशोक त्रिवेदी, पूनमचंद पाटीदार, बाबूलाल पांचाल, सतीश पाटीदार, जगदीश पटेल, मुकेश शर्मा रतलाम वाले लाभ लिया।
-भजनों पर भाव विभोर होकर नाचने लगे।
कथा के दौरान पंडित मुरारी द्वारा बीच बीच मे भजनों की प्रस्तुति दी। साँवरियो हैं सेठ मारी राधा जी सेठानी है…. मीठे रस से भरयोड़ी राधा रानी लगे…. बिरज की छोरी से राधिका गोरी से मेरो ब्याह करादे मैया… आज तो साँवरियो बीरो मायरो ले आयो रे….. आदि भजनों पर श्रोतागण महिला-पुरूष भाव-विभोर होकर नाचने लगे।