
रायपुरिया@राजेश राठौड़
आरोग्य की देवी माता शीतला की ब्रह्म मुहूर्त में पूजा-अर्चना कर व्यंजन का नैवेद्य अर्पित किया गया। घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि की कामना के साथ महिलाओं ने रात्रि बारह बजे से ही शीतला माता मंदिर पहुंचना शुरू कर दिया। वे सजी हुई पूजा की थाली और नवीन वस्त्र धारण कर माता के भजन गाती हुई मंदिर पहुंचीं।
सुबह छह बजे तक श्रद्धा और आस्था के साथ पूजा का दौर जारी रहा। पूजा-अर्चना के बाद महिलाएं जब अपने घर लौटीं तो उन्होंने मुख्य द्वार पर स्वास्तिक बनाया और माता पर चढ़ाया हुआ जल घर में छिड़का। यह परंपरा इस विश्वास के साथ निभाई जाती है कि इससे परिवार के सभी सदस्य स्वस्थ और निरोगी रहते हैं।
बासी भोजन का महत्व छठ के दिन से ही गृहणियां विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने में जुट जाती हैं ताकि सप्तमी के दिन माता को बासी भोजन का भोग लगाया जा सके। इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता और केवल पूर्व दिन का बना भोजन ही ग्रहण किया जाता है। इसे शीतला माता की प्रसादी माना जाता है।
चिकित्सकों का मत है कि इस परंपरा का वैज्ञानिक आधार भी है। बासी भोजन का सेवन शरीर के तापमान को संतुलित करने में सहायक होता है क्योंकि इस समय ठंड खत्म हो रही होती है और गर्मी की शुरुआत होती है।
परंपराओं में बदलाव पहले महिलाएं होली दहन के बाद घर पर ही पापड़ और अन्य खाद्य सामग्री तैयार करती थीं, लेकिन अब भागदौड़ भरी जिंदगी और व्यस्तता के कारण यह परंपरा बदल गई है। बाजारों में आसानी से उपलब्ध सामग्रियों को खरीदकर तैयार किया जाने लगा है, जिससे महिलाओं का समय भी बचता है।
शीतला माता की पूजा भारतीय संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग है, जो न केवल धार्मिक आस्था बल्कि स्वास्थ्य और वैज्ञानिक महत्व को भी उजागर करती है।