
#Jhabuahulchul
रायपुरिया@राजेश राठौड़
होली का त्यौहार सिर्फ रंगों और उमंग का पर्व नहीं है, बल्कि इसमें कई पारंपरिक रीति-रिवाज और मिठाइयों का भी विशेष महत्व है। अंचल में खासतौर पर ‘हार गुज़री’ नामक मिठाई का इस अवसर पर विशेष महत्व होता है। यह मिठाई केवल होली के अवसर पर बनाई और बेची जाती है, जिससे इसकी लोकप्रियता और भी बढ़ जाती है।
चांदी जैसी दिखने वाली मिठाई, जो हर किसी को लुभाए
ग्रामीण क्षेत्रों में ‘हार गुज़री’ अपनी अनूठी बनावट और स्वाद के कारण खास पहचान रखती है। यह सफेद और चमकदार मिठाई देखने में चांदी जैसी लगती है, लेकिन इसे पूरी तरह से शक्कर से तैयार किया जाता है। इसकी कीमत भी आम जनता के बजट में रहती है, होली के समय इसका बाजार मूल्य 70 से 80 रुपये प्रति किलो के बीच होता है।
होली दहन के बाद होता है सेवन
इस मिठाई का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। पुराने बुजुर्गों के अनुसार, जब होली दहन होता था, तो छोटे बच्चे और लड़कियां बुलबुला की माला चढ़ाने के लिए जाते थे और उसके साथ हार गुज़री भी पहनते थे। उसके बाद इसे प्रसाद रूप में खाया जाता था और अपने रिश्तेदारों को भी भेंट स्वरूप दिया जाता था।
दुःखी परिवारों के लिए मिठास की पहल
इस मिठाई का उपयोग केवल उत्सव तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक सौहार्द्र का भी प्रतीक है। गांव के बुजुर्ग भगमल परमार बताते हैं कि यदि किसी परिवार में दुःखद घटना हुई हो, तो होली दहन से एक-दो दिन पहले रिश्तेदार वहां जाकर रंग-गुलाल अर्पित करते थे और हार गुज़री मिठाई भेंट कर उनका मुंह मीठा कराते थे। यह परंपरा इस विश्वास से जुड़ी है कि मिठास से उनके घर में फिर से खुशियां लौट आएं।
हर दुकान पर दिखती है मिठाई की रौनक
होली के अवसर पर गांवों की किराना दुकानों में हार गुज़री मिठाई की विशेष सजावट देखने को मिलती है। हर साल, जैसे ही होली नजदीक आती है, इस पारंपरिक मिठाई की मांग तेजी से बढ़ जाती है। ग्रामीणों के अनुसार, यह सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही एक सांस्कृतिक धरोहर है, जो आज भी होली के पर्व पर जीवन में मिठास घोलने का काम कर रही है।