
#Jhabuahulchul
रायपुरिया@राजेश राठौड़
रायपुरिया में होली के त्योहार की शुरुआत पारंपरिक अंदाज में हो चुकी है। जहां शहरों में आधुनिकता हावी हो रही है, वहीं ग्रामीण अंचलों में अब भी पुरानी परंपराएं और संस्कृति जीवित हैं। यहां होली का डंडा रोपने के बाद बच्चों और युवाओं में विशेष उत्साह देखने को मिलता है।
शाम होते ही गांव के युवा और बच्चे उस स्थान पर इकट्ठा होते हैं, जहां होली रोपी जाती है। पारंपरिक अंदाज में फागुन के गीत गाए जाते हैं और नृत्य किया जाता है। यह नजारा ग्रामीण संस्कृति की जीवंत झलक प्रस्तुत करता है, जो अब शहरी क्षेत्रों में कम ही देखने को मिलती है।
बुल-बुला की माला से सज रही होली
गांव की छोटी बच्चियां गोबर से बनी बुल-बुला की माला तैयार करती हैं और इसे श्रद्धा के साथ होली पर चढ़ाती हैं। इस परंपरा के अनुसार, ये मालाएं देवी-देवताओं को समर्पित की जाती हैं और होली की लकड़ी को ढकना शुरू कर दिया जाता है।
सांस्कृतिक विरासत को संजोने का प्रयास
रायपुरिया सहित कई गांवों में यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। बुजुर्गों का कहना है कि यह न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि सामाजिक मेलजोल और सांस्कृतिक विरासत को आगे बढ़ाने का भी एक जरिया है।
इस अनूठे आयोजन से गांव के लोग न केवल अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी संस्कृति का महत्व समझाने का प्रयास करते हैं। जैसे-जैसे होली का दिन नजदीक आएगा, इस पारंपरिक उल्लास में और भी रंग भर जाएंगे।