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सन् 1915 दशक के पूर्व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं राज्यसभा सांसद, समाज सुधारक, स्वर्गीय मामा बालेश्वर दयाल की कर्मभूमि पर बामनिया के पत्रकारों ने पहली बार करवाया ध्वजारोहण…!

निरंतर यह पहल कायम रहे इसको लेकर पत्रकार साथियों ने लिया निर्णय..

समुचित कार्य की नगर में हो रही प्रशंसा…

Jhabuahulchul 

बामनिया@जितेंद्र बैरागी

गणतंत्र दिवस का महापर्व का आयोजन स्वर्गीय मामा बालेश्वर दयाल की समाधि स्थल पर बड़े
हर्ष उल्लास के साथ बनाया गया। जिसमें नगर के सभी पत्रकार साथियों द्वारा मामा जी की कर्मभूमि
पर पहली बार ध्वजारोहण का आयोजन किया गया। जिसमें विशेष अतिथि के रूप में आश्रम के ही वरिष्ठ विजय सिंह मचार द्वारा ध्वजारोहण किया।

निरंतर यह पहल कायम रहे इसको लेकर पत्रकार साथियों ने लिया निर्णय..

झाबुआ जिले के पहले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की कर्मस्थली पर पहली बार बामनिया नगर के समस्त पत्रकार साथियों ने ध्वजारोहण का आयोजन किया। जिसमें सभी पत्रकारों ने सामूहिक रूप से यह निर्णय लिया कि 15 अगस्त और 26 जनवरी के कार्यक्रम को हर बार अलग-अलग स्वरूपों में मनाया जाएगा। जिसमें पूर्ण स्वतंत्रता संग्राम सेनानीयों और समाज सुधारक को भी विशेष अतिथि के रूप में आमंत्रित कर सम्मानित किया जाएगा। पत्रकारों की पहल की प्रशंसा नगर में चारो और हो रही है।

मामा बालेश्वर दयाल का इतिहास…

सन 1915 में उत्तर प्रदेश के इटावा का रहने वाला ब्राह्मण जाति के युवा बालेश्वर दयाल पिता शिव शंकर दीक्षित जिसने अपनी स्कूली शिक्षा के समय अंग्रेजी शिक्षक से विवाद होने के बाद अपना घर बार ही नहीं पूरे परिवार को छोड़ मध्य प्रदेश के नागदा जंक्शन के रास्ते खाचरोद होते हुए मालवी भाषा सीखने के बाद आदिवासी बहुल थांदला में कदम रखा था। जिसके बाद बामनिया मैं रेलवे स्टेशन होने के चलते अपनी कार्य गतिविधियों को संचालित करने के लिए अपना कार्य स्थल बामनिया को ही चुना था। राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र मे आदिवासियों अन्य वर्गों की बढ़ती भुखमरी, और अंग्रेजी हुकुमात के बढ़ते जुल्मो को लेकर इस युवा ने आदिवासियों के उत्थान के लिए जल, जंगल, जमीन, छुवा-छुत जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर जोर दिया था। और महात्मा गांधी व डॉ राम मनोहर लोहिया डॉ आंबेडकर के रास्ते चलते प्रोढ़ शिक्षा जैसे प्रमुख मुद्दों पर जोर दिया था। और लगातार अंग्रेजी हकूमत के चलते जेल भी गए। जिनके कार्यो का असर पुरजोर तरीके से मध्यप्रदेश महाराष्ट्र गुजरात ही नहीं सबसे ज्यादा असर राजस्थान के आदिवासियों में हुआ और इस समाजवादी ने शांति का आंदोलन करते हुए इन आदिवासियों सहित सभी लोगों की दशा और दिशा ही बदल दी थी ।

जिले सभी पुराने सरकारी कार्यालय इस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की देन….

सन् 1915 से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले झाबुआ जिले के मामा बालेश्वर दयाल एक ऐसे महापुरुष थे जिसने महात्मा गांधी, डॉ राम मनोहर लोहिया, जवाहरलाल नेहरू, डॉ भीमराव अंबेडकर, के साथ 1947 में आजादी दिलाने का काम किया था। और 1998 तक जिले सहित प्रदेश व केंद्र तक में मामा बालेश्वर दयाल का नाम सम्मान के साथ लिया जाता था। आज झाबुआ जिले में भी वह सभी सरकारी कार्यालय मामा जी की ही देन है।

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