
#Jhabuahulchul
झाबुआ@आयुष पाटीदार
वाग्धारा संस्था द्वारा राजस्थान, मध्य प्रदेश के आदिवासी समुदाय के साथ मिलकर 1168 गाँवों में मृदा के महत्व और उसके संरक्षण के स्थानीय समाधान पर संवाद कर विश्व मृदा दिवस मनाया । हजारों लोगों द्वारा गाँव – गाँव में मिट्टी पूजन , रैलियाँ और संवाद कार्यक्रमों के माध्यम से मृदा के माँ स्वरुप को पहचान कर उसके पोषण और जीवन्तता बनाये रखने के लिए समुदाय की चक्रीय जीवनशैली को पुनः अमल में ला कर उसका संरक्षण करने की प्रतिबद्धता दोहराई गयी ।
मध्य प्रदेश के रतलाम तथा झाबुआ जिले के बाजना, सैलाना, पेटलावद, थांदला ब्लॉक के 250 गांवों में लगभग 18600 महिला पुरुष तथा बच्चों ने कृषि एवं आदिवासी स्वराज संगठन, ब्लॉक कोडीनेटर, सामुदायिक सहजकर्ताओ के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन के सन्दर्भ में मिट्टी के बिगड़ते स्वास्थ्य तथा संरक्षण पर संवाद किया। इस दौरान समुदाय द्वारा गांव गांव में मृदा पूजन, मिटटी की आरती कर रैली तथा गोष्ठियां का आयोजन किया गया।
विभिन्न स्थानों पर हुए संवाद कार्यक्रम में मिट्टी का शोषण कर बिना उसे पुनः पोषण दिए जाने से मिट्टी के बिगड़ते स्वास्थ्य को सभी के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में स्वीकार किया गया । बढ़ते हुए वैज्ञानिक तरीकों से हमारे मृदा की सजीवता को समाप्त करने का कार्य किया है , बढ़ते रासायनिक उर्वरकों का उपयोग, खरपतवार नाशकों का प्रयोग कर मिट्टी का शोषण कर उसके स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया गया है । प्रकृति प्रेमी समुदाय में जहाँ मिट्टी को अपनी माँ के रूप में माना जाता है वहां इन परिस्थितियों में इस की कल्पना कर सकते हैं कि अगर हम किसी माँ को केवल बच्चों को जन्म देने के रूप में देखें और उसके स्वास्थ्य का ध्यान न रखें, तो हम अपने जीवन को कैसे आगे बढ़ा पाएंगे? हम उसका पोषण कैसे कर पाएंगे? हमें परंपरागत वैज्ञानिक तरीकों पर विचार करना होगा । ऐसे प्रयासों को समझना होगा जिनमें मिट्टी से शोषण के बाद उसे पुनः पोषित करने की प्रक्रियाएँ शामिल थीं — जैसे खेतों को समय-समय पर खाली छोड़ना, और खेती के वे तरीके अपनाना जो मृदा के शोषण के बजाय उसके पोषण के लिए होते थे। यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण हमें फिर से अपनाना होगा।
इस अवसर पर संगठन लीड बाबूलाल चौधरी ने बाजना ब्लॉक के मकनपूरा, भूरी घाटी व शंभूपुरा में भागीदारी दी ।उन्होंने कहा कि मृदा हमारी पृथ्वी का सबसे मूल्यवान एवं महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है, जो खाद्य उत्पादन, पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन और जलवायु स्थिरता के लिए आधार स्तम्भ है। स्वस्थ मृदा वह है जो पौधों को बिना किसी बीमारी या अतिरिक्त बाहरी सहायता के बढ़ने में मदद करती है। आज के समय में मृदा का बिगड़ता स्वास्थ्य मानवता और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अत्यधिक चिंताजनक हैं, जिसके प्रमुख कारणों में गैर पारंपरिक कृषि, रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग, जंगलों की अंधाधुंध कटाई, जलवायु परिवर्तन, मृदा की अपर्याप्त देखभाल और मृदा में पोषक तत्वों का असंतुलन शामिल हैं। यह न केवल खाद्य सुरक्षा को खतरे में डाल रहा है, बल्कि जलवायु परिवर्तन की समस्या को भी जटिल बना रहा है। मिट्टी की उर्वरता में गिरावट के कारण फसलों की उपज में कमी आ रही है। कृषि एवं आदिवासी स्वराज संगठन प्रतिनिधि कालीदेवी, इंद्रा देवी गरवाल, शंकर लाल मईडा, अंजना डामर ने मिट्टी के महत्व पर प्रकाश डाला और ग्राम सभाओं में मिट्टी सरंक्षण, मिट्टी स्वास्थ्य संबंधी प्रस्ताव जमा कराने पर जोर दिया।
टीम लीडर धर्मेंद्र सिंह चुंडावत ने भी इस अवसर पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि बढ़ते जलवायु परिवर्तन और कृषि में रासायनिक पदार्थों के बढ़ते उपयोग से होने वाले खतरनाक परिणामों से निपटने का प्रभावी उपाय पारंपरिक कृषि पद्धतियों में ही निहित है, और इसके लिए मिट्टी का स्वस्थ रहना अत्यंत आवश्यक है। मृदा दिवस के अवसर पर आयोजित होने वाले इस प्रकार के कार्यक्रमों से मृदा संरक्षण के प्रयासों को और मजबूती मिलेगी और समाज में इसके प्रति जागरूकता का स्तर बढ़ेगा जिससे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाए जा सकेंगे।
ग्राम स्वराज समूह से रामा,कांतिलाल राकेश, गोतम ,मनजी ,प्रभू ,अमलीयार कालु रूपा गणेश तोलिया फुलजी बदिया लक्ष्मण बालु कचुरू सक्षम समूह शन्तिबाई एतरीबाई सतुराबाई लीलाबाई जेताबाई कमलीबाई मांगुडीबाई चप्पलीबाई अन्य दुर्गाबाई हुकीबाई एतरीबाई नानीबाई रूपलीबाई सुगनाबाई राजेन्द्र रामु रायचन्द मोहन अमलीयार, ब्लॉक सहज कर्ता रेणुका पोरवाल, मुकेश पोरवाल, पिंकी टेलर व सभी सामुदायिक सहज कर्ता ने कार्यक्रम में अपनी भागीदारी निभायी।