दीपपर्वः कुम्हारों को अच्छी आय की उम्मीद, दीये लाएंगे खुशहाली की दीपावली।
रायपुरिया@राजेश राठौड
दीपावली पर्व नजदीक आते ही कुम्हारों के चाक घूमने लगे हैं। बड़ी संख्या में मिट्टी के दीपक बनाने का कार्य कुम्हारों ने अभी से शुरू कर दिया हैं। उन्हे ज्यादा बिक्री होने की उम्मीद जगी है।
गोरतलब है कि क्षेत्र के प्रजापत समाज के लगभग सभी लोग दीये बनाने के कार्य में इन दिनों तेजी से जुटे हुए हैं। हर दिन बड़ी संख्या में चाक घूमाकर दीयो का निर्माण कर रहे है। इस वर्ष दीपपर्व 31 अक्टूबर को मनाया जाएगा। इससे पूर्व 29 अक्टूबर को धनतैरस का त्योहार मनाया जाएगा। वहीं 1 नवंबर को गोवर्धन पूजा यानि पड़वा पर्व मनाया जाएगा। इसके अगले दिन यानि 2 नवंबर को भाईदूज का पर्व मनाया जाएगा।
हर घर जलेंगे खुशियों के दीप-
मिट्टी के दीये से दीपावली में दीपक जलेंगे, हर घर में रोशनी होगी। पूरे पेटलावद क्षेत्र में दर्जनों प्रजापत दीये और लक्ष्मी की मूर्ति बनाने में लगे हुए हैं। दीपों का पर्व दीपावली को अब कुछ ही दिन शेष है। इस समय कुम्हारों के हाथ भी चाक पर अनवरत घडी के सेकेंड की सूई की तरह दौड रहे हैं। प्रजापत की बस्तियों में जिधर भी नजर जा रही है सब के सब मिट्टी के दीये बनाने में जुटे नजर आ रहे हैं। उनको यह विश्वास है की इस बार उनके घूमते चाक से उतरने के बाद दीपक उनके घर में खुशियां लायेंगे। यही वजह है की कुम्हार सुबह से लेकर रात तक मिट्टी के दीये और खिलौने और अन्य सामान बनाने में जुटे हैं।
बिक्री बढने की उम्मीद-
गांव के देवचन्द्र प्रजापत बताते हैं कि इस बार उम्मीद है कि कुछ ज्यादा दीपक की बिक्री होगी क्योंकि चाइना के बने सामन की खरीदारी बंद हो गई है। इस बार उम्मीद है कि दीपकों की बिक्री अच्छी होगी। नगर में कई परिवार इस कार्य में लगे हुए है। गांव में रहने वाले कुम्हार परिवार अबकी दीपावली फिर से उम्मीद के सहारे मिट्टी के दीये बना रहे हैं। प्रजापत समाज के वरिष्ठजन बताते है कि दीपावली ही ऐसा त्योहार है, जिसमें मिट्टी से बने सामानों की अच्छी बिक्री हो जाती है। आम दिनों में तो बस उतना ही खर्चा निकल पाता है, जितनी लागत लगाते हैं। गांव के कैलाश प्रजापत ने बताया की अब हमारे समाज के लोग रेडीमेड खरीद कर दीपक लाते हैं और बाजार में बेचते हैं क्योंकि वह सस्ते पढ़ते हैं घर पर बने दीपक महंगे पढ़ते हैं मेहनत भी अधिक करना पड़ती है इसलिए राणापुर ,मेघनगर ,बाग, राजस्थान के बांसवाड़ा कुशलगढ़ आदि जगहों से खरीद कर ले आते हैं। आज़ भी अपने बुजुर्ग द्वारा बताई हुई परम्परा को निभाया जा उनके द्वारा गांव बांट रखें उसी गांव में वितरण किये हुए उसी गांव में वह दिपक रखने जाते दिपावली दो दिन पहले उनके घरों पहुंचते हैं दिपक की महेनतान एक माह बाद घर मालिक उन्हें रुपए की जगह पर अनाज देते